Tuesday, July 13, 2010

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी जी द्वारा जारी वक्तव्य

पैट्रोल, डीज़ल और एलपीजी की कीमतें बढ़ने से आम आदमी परेशान है और देश की जनता में इस कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के इस जन-विरोधी निर्णय के प्रति जबरदस्त आक्रोश है। महंगाई के खिलाफ आम जनता में जागरूकता पैदा करने व केन्द्र सरकार को बढ़े हुए पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में कमी करने के उद्देश्य से देशभर में भाजपा सड़कों पर उतरी है। भाजपा सड़क से लेकर संसद तक इसका विरोध करेगी। भाजपा ने गत 25 जून से ही विरोध कार्यक्रम की शुरूआत कर दी है। देशभर के 428 जिला मुख्यालयों में धरने-प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित हुए जिसमें 5 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इसी क्रम में 30 जून, 1 जुलाई व 2 जुलाई को देशव्यापी ''भाजपा महंगाई विरोधी जन आंदोलन'' कार्यक्रम आयोजित हुआ। देशभर के भाजपा कार्यकर्ताओं ने रैली, धरना प्रदर्शन व गिरफ्तारी देकर अपना जबरदस्त विरोध जताया है। यह विरोध कार्यक्रम आगे भी जारी रहेगा और इस कड़ी में 5 जुलाई को भारत बंद का आयोजन किया गया है। भाजपा का मंहगाई के विरूध्द एक हस्ताक्षर अभियान देशभर में चल रहा है। मानसून सत्र के पहले दिन भारतीय जनता पार्टी 10 करोड़ लोगों का मंहगाई विरोधी हस्ताक्षरित ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति को सौंपेंगी।
 
कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की गलत आर्थिक नीति, कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण आम जनता की बुनियादी जरूरतों की वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृध्दि हो रही है। आम जनता महंगाई की मार से बेहाल हो चुकी है। यूपीए सरकार की जन-विरोधी नीतियों के कारण देश में एक आतंक का माहौल दिखाई देने लगा है। देश के अंदर पिछले साल और इस साल गेहूं का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। सरकारी आंकड़ों द्वारा चीनी का उत्पादन 1 लाख 78 टन के करीब हुआ है। कांग्रेस राज में गरीब भूखा मर रहा है, किसान आत्महत्या कर रहें है और 58 हजार करोड़ का गेहूं एफसीआई गोदामों में सड़ रहा है। अन्य देशों की तुलना में भारत में चीनी की कीमतें  दुगनी है। आज विश्व बाजार की तुलना में भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतें 80 प्रतिशत से अधिक हैं। यह सरकार का कुप्रबंधन नहीं तो और क्या है ? दिसम्बर, 2009 में कृषि उत्पादन दर 0.2 प्रतिशत रही है उसके बावजूद भी सरकार ने कृषि विकास के लिए अपने कुल 12 लाख करोड़ के बजट में से मामूली-सा मात्र 0.07 प्रतिशत यानि सिर्फ 900 करोड़ का प्रावधान किया। किसान जब अपनी फसल पैदा करता है तो उसको उसकी कीमत कम मिलती है, दूसरी तरफ ग्राहक के रूप में वही वस्तु खरीदने जाता है तो उससे अधिक कीमत वसूली जाती है। आम जनता में इस सरकार की तानाशाही रवैये के प्रति घोर निराशा है। उसे समझ नहीं आ रहा कि आम जनता के साथ कांग्रेस का हाथ का नारा देने वाली यह सरकार आम जनता से और कितना विश्वासघात करेगी ?
 
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वायदा किया था कि महज सौ दिन में ही हम महंगाई कम कर देंगे। वह महंगाई, जिसकी मार आम जनता यूपीए-I के शासनकाल के अंतिम वर्षों में झेल रही थी। यूपीए-II के शासन के सौ दिन पूरे हुए और महंगाई कम होने की बजाय कई गुना बढ़ गई। एक वर्ष पूरे होने के पश्चात् भी महंगाई की रफ्तार घटने के बजाय बढ़ती ही चली गई। गत अप्रैल माह में हमने इस सरकार से बढ़ती हुई महंगाई को लेकर 14 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे थे। तथा इस सरकार से महंगाई के संदर्भ में श्वेत पत्र जारी करने की मांग भी की थी। किंतु, इस कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने आम जनता के हितों से जुड़े इन प्रश्नों की अनदेखी करते हुए महंगाई को कम करने का कोई भी प्रयास नहीं किया।
 
इस बढ़ती हुई महंगाई ने देश की गरीब और मध्यम वर्ग की जनता की कमर तोड़ दी है। सरकार को यह भी नहीं पता कि इस देश में कितने गरीब है। योजना आयोग के अनुसार यह संख्या 27 प्रतिशत है। ग्रामीण विकास की एन.सी. सक्सेना कमेटी के अनुसार कैलोरी के आधार पर देश में 50 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे है और असंगठित क्षेत्र के लिए गठित अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार देश के 77 प्रतिशत लोग 20 रूपए प्रतिदिन पर जीविका जीते है। तेंदुलकर कमेटी के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या 37.2 प्रतिशत है। सरकार साफ-साफ यह बताए कि आखिर इस देश में गरीबों की संख्या कितनी हैं ? वहीं योजना आयोग ने अपनी 2005 की रिपोर्ट में बीपीएल जनसंख्या को 31 करोड़ बताया था। तेंदुलकर समिति ने दिसम्बर, 2009 में इसे 42 करोड़ बताया फिर भी सरकार दावा कर रही है कि गरीबी घटी है। ग्रामीण भारत के 42 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे हैं और सरकार उनको खाद्यान्न देने में असमर्थ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 में बीपीएल परिवारों की संख्या इस देश में लगभग 28 करोड़ थी जो कि बढ़कर करीब 41 करोड़ हो गई है। इन लोगों की आमदनी लगभग 20 रूपए प्रतिदिन से भी कम है। इसके लिए कांग्रेस की जन-विरोधी नीतियां जिम्मेदार है। ऊपर से बेलगाम बढ़ती महंगाई ने इन परिवारों के बच्चों के मुंह का निवाला छीन लिया है।
 
इस सप्ताह खाद्य मुद्रा स्फीति की दर 12.92 फीसदी दर्ज की गई है, जिसे गत सप्ताह की तुलना में 4 फीसदी की कमी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन, योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणव सेन ने इस बात का खुलासा करते हुए कहा है कि खाद्य वस्तुओं की मुद्रा स्फीति में तेज गिरावट की मुख्य वजह बीते साल की इसी अवधि में खाद्य मुद्रा स्फीति का आधार ऊंचा होना है। वास्तव में ज्यादातर खाद्य वस्तुएं महंगी बनी हुई हैं। यहां यह भी ध्यान रखने योग्य है कि हाल ही में डीज़ल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी का असर आगामी सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर देखने को मिलेगा, जिससे महंगाई और अधिक बढ़ेगी।
 
पेट्रोल और डीज़ल के दामों में इस सरकार द्वारा की गई बढ़ोतरी को सही ठहराते हुए माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जो बयान दिया है वह बयान इस सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है। आम जनता में घोर निराशा है। भाजपा उनके इस संवेदनहीन बयान की भर्त्सना करती है।
 
हम सरकार से यह पूछना चाहते है कि :
  • क्या प्रधानमंत्री को केवल ऑयल कंपनियों की खस्ता हालत दिखती है और जनता की खस्ता हालत नहीं दिखती?
  • सरकार बताए की उनकी प्राथमिकता क्या है ? आम आदमी या ऑयल कंपनी ?
  • सरकार यह बताए कि दो साल से लगातार वादे करने के बावजूद वह महंगाई को क्यों नहीं रोक पाई ?
  • क्या सरकार को पता है खाद्यान्न कीमतों का सूचकांक जहां नरमी के संकेत दे रहा है वहीं बाजार में आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं ?
  • महंगाई कम करने के लिए यूपीए सरकार कौन-सा सफल और कारगर कदम उठाया है ?
  • श्रीमती सोनिया गांधी बताए कि एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री महंगाई रोकने में नाकाम क्यों हो रहे हैं
  • श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी महंगाई के मुद्दे पर क्यों चुप है देश जानना चाहता है ?

    (श्याम जाजू)
        मुख्यालय प्रभारी

Courtesy : www.bjp.org

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