Monday, May 9, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया स्वतंत्रता संग्राम........... एक दौड़ भ्रष्टाचार के खिलाफ......

10 मई 1857 भारत की आज़ादी के लिए पहली क्रांति का पहला दिन | क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो को भारत से

खदेड़ने के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दिया | उनका लक्ष था, भारत को आज़ाद करना | एक स्वतंत्र राष्ट्र का

सपना, उनका अपना था | हजारो - हज़ार युवाओ ने अपने प्राण दे दिए इस एक सपने के लिए |

आज उनके सपनो के भारत को भ्रष्टाचारी लूट रहे है...

आइये हम 10 मई 2011 को उन अमर क्रांतिकारियों की याद में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया स्वतंत्रता संग्राम

करे | मेरे साथ भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित दौड़ में सहभागी बने |

दिनांक 10 मई 2011 दशेहरा मैदान, इंदौर से लालबाग पैलेस, इंदौर तक..

प्रातः ७ बजे.....

इंदौर के अलावा भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में भी दौड़ का आयोजन किया जा रहा है.....

इंदौर - दशहेरा मैदान से लालबाग पैलेस तक....

भोपाल - 74 बंगले से महाराणा प्रताप चौराहे तक....

ग्वालियर - महाराजवाड़े से रानी लक्ष्मीबाई समाधी स्थल तक...

जबलपुर - मालवी चौक से बड़े फव्वारे, कमानिया तक ...

अवश्य सहभागी बने.....

आपका

जीतू जिराती

Saturday, January 15, 2011

राष्ट्रीय एकता यात्रा अलगाववाद की आग का शमन करेगी

युवा मोर्चा की 12 जनवरी से कोलकाता से आरम्भ हुई राष्ट्रीय एकता यात्रा का उद्देश्य देश की अखण्डता के प्रति जनजागरूकता का विस्तार करना है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमन्त्री उमर अब्दुल्ला का बयान को दुर्भाग्यपूर्ण है, राष्ट्रीय एकता यात्रा का मिशन आतंकवाद की चुनौती से निपटना है। जो आग अलगाववादियों द्वारा सुलग गई है। उसे ठण्डा करना है। उमर अब्दुल्ला का बयान मुख्यमन्त्री के संवैधानिक पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। अपितु उमर अब्दुल्ला के बयान ने ही अलगाववादियों को शह दी है। युवा मोर्चा उनकी गीदड धमकियों से खौफ खाने वाला नहीं है।

उमर अब्दुल्ला ऐसे कोई बयान नहीं दे जिससे अलगाववादियों और शत्रु पक्ष को प्रोत्साहन मिले। जहां तक जम्मू कश्मीर के अन्तिम रूप से भारत में विलय का सवाल है। विलय समग्र रूप से हो चुका है और उमर अब्दुल्ला के दादा विलय के साक्षी रहे है। अलगाववादियों के समर्थन से सरकार में बने रहने का जो आसान तरीका नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने तजबीज कर रखा है अब उसकी उम्र पूरी हो चुकी है। जम्मू कश्मीर को भारत से अलहदा दिखाने का जो शौक अब्दुल्ला खानदान ने खोजा है उसका सभी संवैधानिक संस्थाओं ने विरोध किया है। उनका कोई तर्क वास्तविकता की कसौटी पर नहीं ठहरता है। अपनी गलतियां छिपाने के लिये उमर अब्दुल्ला सरकार ने जिस तरह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने तर्क दिया है उसे आयोग ने खारिज कर दिया है। उमर अब्दुल्ला सरकार को आईना दिखा दिया है।

-जीतू जिराती

Thursday, January 13, 2011

राष्ट्रवाद के जागरण से ही कश्मीर समस्या का हल संभव

केशर की क्यारी कश्मीर में ज्यों ज्यों बर्फ गिरती जा रही है उसका प्राकृतिक तापमान कम होता जा रहा है, लेकिन वहां के अलगाववादी नेता वहां के राजनैतिक तापमान को आपने विषैले शब्दबाण चलाकर लगातार गर्माते जा रहे है।

भारतीय जनता युवा मोर्चा २६ जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराने जा रहा है, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के नेता यासीन मालिक ने चुनौती दी है कि हम तिरंगा झंडा नहीं फहराने देंगे।

आखिर अपने ही देश में अपना राष्ट्र ध्वज न फहराने देने कि चुनौती देने कि हिम्मत अलगाववादियों कि कैसे हो जाती है, क्यों नहीं यह चुनौती देते वक्त ही उन्हें जेल में अन्दर दाल दिया जाता, क्यों देश के खिलाफ बोलने वाले कि जबान काट नहीं दी जाती। यह सब हो सकता है, लेकिन इसके लिए चाहिए दृढ इच्छाशक्ति जो इस देश के वर्त्तमान केंद्रीय नेतृत्व में नहीं है ।

आजादी के समय से ही पाकिस्तान कि मंशा कश्मीर को हड़पने कि रही है, इसके लिए पाकिस्तान द्वारा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से केशर कि क्यारी में आग लगाने कि नाकाम कोशिश लगातार जारी जारी है, जब चार चार युद्धों से बात नहीं बनी, बीस साल कि आतंकी हिंसा से दाल नहीं गली, तो पिछले कुछ महीनो से सामूहिक पत्त्थरबाज़ी से कश्मीर को छिनने कि कोशिश हो रही है, कश्मीर में पाकिस्तान के पैतरे बदले है नियत नहीं।

कश्मीर के नेता पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर ही बात करते है उमर अब्दुल्ला ने राज्य के मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए भी कश्मीर को भारत में विलय कि वैद्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। पाक परस्त अलगाववादी केंद्र सरकार कि नाक के निचे देश कि एकता और अखंडता को खुलेआम चुनौती दे रहे है लेकिन केंद्र सरकार वोट बैंक खिसकने के डर से मौन साढ़े हुए है, उन्हें चिंता वोट बैंक कि है देश कि नहीं।

कश्मीर का संकट कोई अचानक नहीं बढ़ा है, यह तो पिछले 63 वर्षो में कांग्रेस सरकारों कि लगातार गलतियों का परिणाम है। स्वाधीनता के समय संपूर्ण भारत कि रियासतों के विलय का मामला सरदार पटेल के जिम्मे था लेकिन एकमात्र कश्मीर ही ऐसी रियासत थी जिसका जिम्मा पंडित जवाहरलाल नेहरु का था , 1948 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया तब भारत कि सेना ने हमलावरों को बुरी तरह खदेड़ना प्रारंभ कर दिया था पाकिस्तान के कब्जे वाले हिस्से को सेना मुक्त करने कि स्थिति में थी परन्तु जवाहरलाल नेहरु युद्ध को बिच में रोककर सरदार पटेल के न चाहते हुए भी कश्मीर मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर गए जिससे कश्मीर विवाद का अंतरराष्ट्रीकरण हुआ। इसी कारन संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह सम्बन्धी प्रस्ताव पारित किया। दूसरी गलती उन्होंने पाकिस्तान से लौटे शरणार्थीयो को कश्मीर में न बसने देकर कि, जनसँख्या संतुलन बनाकर कश्मीर समस्या का हल हो सकता था परन्तु पं. नेह्तु कि जिद के कारण यह संभव न हो सका।

जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ उस समय जम्मू कश्मीर को धारा - 370 के माध्यम से विशेष राज्य का दर्जा दिया गया जो अलगाववाद का मुख्य कारन बना। इस धारा - 370 के कारण केंद्र के पास केवल रक्षा, विशेष निति, मुद्रा और संचार के विषय ही है। जम्मू कश्मीर राज्य का अपना अलग संविधान एवं ध्वज है। जम्मू कश्मीर के अन्दर शेष भारत के नागरिको को जमीन खरीदने, शासकीय नौकरी पाने एवं मतदान करने का अधिकार नहीं है। भारतीय संसद देश के किसी भी राज्य कि सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है लेकिन जम्मू कश्मीर में ऐसा करने के लिए वहां कि विधानसभा से अनुमति लेना पड़ती है। इसी धारा - 370 ने कश्मीर के लोगो के अन्दर अलगाववाद कि भावना को पैदा किया। जिसके कारण आज घटी में आतंकवाद चरम पर है, अलगाववादीयो के हौसले बुलंद है, तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित अपने घरो से बेघर होकर घूम रहे है। जब तक धारा - 370 रहेगी अलगाववाद कि आग सुलगती रहेगी।

कश्मीर के भारत में विलय के साथ ही इन विकृत व्यवस्थाओ के प्रति राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगो ने अपना विरोध प्रारंभ कर दिया था। जम्मू कश्मीर में दो प्रधान दो निशान एवं दो संविधान तथा परमिट प्रणाली के विरोध में भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने परमिट प्रणाली तोड़कर कश्मीर में प्रवेश किया, शेख अब्दुल्ला सरकार द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहाँ रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, उस आन्दोलन के परिणाम स्वरुप ही कश्मीर में वजीर- ऐ-आज़म व् सदर- ऐ- रियासत कि व्यवस्था समाप्त हुई एवं परमिट प्रणाली खत्म हुई। कश्मीर घाटी आज भारत के नक़्शे पर है तो उसका एकमात्र कारण भारतीय जनसंघ और उसके स्वर्गीय नेता डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान है। राष्ट्रभक्तो ने राष्ट्र के लिए पहले भी बलिदान दिए और आगे भी देते रहेंगे। पर दुखद बात यह है कि जम्मू कश्मीर के नेता पाकिस्तान कि तोतारटत भाषा बोल रहे है। शेख अब्दुल्ला कि नेशनल कांफ्रेंस "ब्रह्ह्तर स्वायत्ता" कि बात करते हुए 1953 से पूर्व कि स्थिति कि बहाली कि मांग करती है। जिसका सीधा अर्थ है कि उन्हें अलग प्रधानमंत्री, अलग संविधान, अलग सर्वोच्च न्यायालय, अलगचुनाव आयोग चाहिए। पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट "स्वशासन" (Self Rule) कि बात करता है और यह पाकिस्तानी मुद्रा को कश्मीर में वैद्यता दिलाना चाहते है।

अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस आजादी कि मांग समय समय पर करती रहती है। इन सभी कि एक स्वर मांग है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को समाप्त कर जम्मू कश्मीर से सेना को वापिस बुला लेना चाहिए। यह अधिनियम सेना को यह अधिकार देता है कि शांति व्यवस्था को कायम रखने हेतु बल प्रयोग एवं गोली चलाने को स्वतंत्र है । सेना ही वह शक्ति है जो घाटी में होने वाले भारत विरोधी षड्यंत्रों का सामना कर रही है, इस अधिनियम के समाप्त होने से सेना का मनोबल गिरेगा।

आज आवश्यकता है कि कश्मीर समस्या के स्थाई हल कि, इसके लिए ठोस कार्यवाही करना होगी, आतंकवादियों से बातचीत नहीं, आतंकवाद का डटकर मुकाबला करना होगा, सेना का मनोबल और ऊँचा करना होगा / कश्मीर से जो कश्मीरी पंडित बेघर हो गए है उनकी पुनः घर वापसी करनी होगी। भारतीय संसद ने 1994 में सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कर संकल्प लिया था कि पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लिया जायेगा, संसद के इस संकल्प को पूरा करने हेतु सरकार आवश्यक कदम उठाये। कश्मीर के युवाओ और आम लोगो के लिए सुरक्षित, संपन्न और उत्पीडन मुक्त जीवन सुनिश्चित किया जावे। कश्मीर समस्या कोई मजहबी समस्या नहीं है सभी राजनैतिक दलों को दलीय राजनीती से ऊपर उठकर इसे राष्ट्रीय समस्या के रूप में देखना होगा। घाटी कि माटी देश के युवाओ को पुकार रही है, कश्मीर का दर्द भारत का दर्द है, इसे हमें महसूस करना होगा। आवश्यकता है कश्मीर के अन्दर राष्ट्रवाद कि अलख जगाने कि वहां राष्ट्रभक्ति का वातावरण बनाने कि तभी इस समस्या का स्थाई हल संभव होगा।

और फिर से कोई कल्हण वहां शांति से बैठकर राजतरंगिनी कि रचना कर सकेगा और कहेगा कि दुनिया में अगर कही स्वर्ग है तो यही है यही है .....


जीतू जिराती